ras ke kitne ang hote hain-ras in hindi-रस कितने प्रकार के होते हैं

ras ke kitne ang hote hain-ras in hindi

दोस्तों आज हम इस लेख में रस के प्रकार  और रस के अंग  के बारे में जानेंगे और साथ ही साथ अंत में रस की परिभाषा  क्या होती है उसे भी समझने की कोशिस करेंगे जिसे इस आर्टिकल के माध्यम से आपको सभी तरह की जानकारी मिल सके ।

ras ke kitne ang hai-(ras ke ang kitne hote hain)

हिंदी व्याकरण में जो रश की परिभाषा दी गयी है उसके हिसाब से ras ke ang को  चार अंग में बांटा गया  है जिसके बारे में निचे विस्तारपूर्वक बताया गया है ।

1 ) विभाव

2 ) संचारी भाव 

3 ) अनुभाव

4 ) स्थायीभाव  

  • विभाव 

जो इंसान किसी भी पदार्थ यह दूसरे इंसान के हिर्दय के भावो को जगाने में सफल होते हैं उसे ही विभाव कहा जाता हैं । इनके आश्रय से रस पैदा होता है जिसे हेतु के नाम से जानते हैं ।

साथ में भावो को प्रकट करनेवाले को विभव रस कहते है एवं इन्हे कारण रूप भी कहते है ।स्थाई भाव का पैदा होने का मुख्य वजह आलम्बन विभाव होता है । इसके वजह से ही रस की स्थिति बनती हैं ।

vibhav ke kitne bhed hote hain

A ) आलम्बन विभाव

जिसका सहारा या आलम्बन को पाकर स्थाई भाव जागते है उन्हें आलम्बन विभाव कहा जाता है । उदहारण के तौर पर नायक और नायिका आदि । आलम्बन विभाव के दो पक्ष होते हैं ।

1 ) आश्रयालम्बन

2 ) विषयालंबन

जिसके मन में भाव जगता है वो आश्रयालम्बन और जिसके कारण या प्रति भाव जगे वह विषयालंबन कहलाता हैं । यदि मैं आपको एक उदाहरण के द्वारा समझाने के प्रयाश करूँ तो मान लजिए की राम के मन में सीता के लिए रति का भाव जगता है तो राम आश्रय होंगे एवं सीता विषय

B ) उद्दीपन विभाव(uddipan kise kahate hain(ras ke kitne ang hote hain-ras in hindi)

जिस परिस्थिति या वस्तु को देखकर सतही भाव उद्दीपित होता है वह उद्दीपन विभाव कहलाता है । उदाहरण में जैसे चांदनी , एकांत स्थल , नायक और नायिका की शारीरिक चेस्टा आदि ।

  • संचारी भाव 

जो स्थाई भाव के साथ संचरण करते है उन्हें ही संचारी भाव कहते हैं । साथ में कभी भी एक संचारी कभी भी स्थाई भाव के साथ नहीं रह सकता इसलिए इसे वयभिचारी भाव भी कहते हैं ।

sanchari bhav ki sankhya

यदि इनकी संख्या की बात करे तो , इनकी कुल 33 संख्या होती है जिसकी सूचि निचे दी गयी है ।

ras-ke-kitne-ang-hote-hain-ras-in-hindi-1

  • अनुभाव 

मनोगत भाव की दर्शाने के लिए शारीरिक विकार की अनुभाव कहते हैं । यानी की वाणी और अंग द्वारा किये गए अभिनय से जो अर्थ निकलता हैं वह अनुभाव कहलाता है । वैसे तो अनुभाव की संख्या अभी तक निश्चित नहीं हुई है लेकिन जो आठ प्रकार के अनुभाव सहज एवं सात्विक विकार के रूप में आते है उन्हें सत्विक्भाव कहते है

  1. सतम्भ 
  2. प्रलय
  3. अश्रु 
  4. विवर्णता 
  5. कम्प 
  6. स्वर – भंग
  7. रोमांच 
  8. स्वेद 
  • स्थायीभाव (sthayi bhav kise kahate hain)

स्थायीभाव को मुख्या रूप से प्रधान भाव से सम्बोधित किया जाता है जो रस की अवस्था तक पहुंच सकता है । जैसे की एक काव्य में स्थायीभाव सुरु से लेकर आखिरी तक होता है ।

मुख्य रूप से इसकी संख्या 9 बताई गयी है और स्थायी भाव ही रस का आधार होता है । एक रस के मूल में एक स्थाई भाव विधमान रहता हैं । अथार्त रसो की संख्या भी 9 है जिन्हे नव रस से सम्बोधित किया जाता हैं ।

बाद में आचार्यो के द्वारा दो और भाव वातसल्य और भगवद विषयक रति को इन 9 रस (9 ras)में जोड़ दिया गया जिसके वजह 9 स्थायीभाव की संख्या बढ़कर 11 हो गयी जिसे निचे दर्शाया गया है ।

रस के प्रकार-ras ke prakar(ras ke kitne ang hote hain-ras in hindi)

नाटकीय महत्व को ध्यान में रखते हुए आचार्य भरतमुनि (bharathamuni)  ने 8 रस का उल्लेख किया है जिसमे – रौद्र ,श्रृंगार , हास्य , वीर , करुण , भयानक , अद्भुत एवं बीभत्स है । लेकिन आचार्य मम्मट और पंडितराज जगन्नाथ ने 9 प्रकार के रस को सुझाया

जिसमे शांत को शामिल क्या गया फिर इसके उपरान्त आचार्य विस्वनाथ ने वातसल्य को दसवा और रूपगोस्वामी जी ने मधुर  को इग्यारहवा रस की की संज्ञा दी जिसे बाद में भक्ति रस के रूप में मान्यता मिल गयी ।

1 ) श्रृंगार रस – ( किस रस को रसराज कहा जाता है  )

श्रृंगार रस को आचार्य भोजराज जी ने रसराज कहा है । जैसे की नाम से पता चलता है की यह स्त्री और पुरुष का पारस्परिक आकर्षण है जिसको काव्यशास्त्र में रति स्थायी भाव भी कहा जाता है ।

अथार्त जब बिभाव , अनुभाव एवं संचारी भाव के मिलने से रति स्थायी भाव आस्वाध हो जाता है तो उसे ही श्रृंगार रस कहते हैं । श्रृंगार रस में सुख और दुःख दोनों तरह की अनुभूतिया होती हैं इसलिए इसके दो भेद है – shringar ras example in hindi

  • > सयोंग श्रृंगार 

जहाँ नायक और नायिका का मिलान का सयोंग बनता है उसे ही सयोंग श्रृंगार कहा जाता हैं उदाहरण के लिए –

“चितवत चकित चहूँ दिसि सीता।
कहँ गए नृप किसोर मन चीता।।
लता ओर तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।
थके नयन रघुपति छबि देखे।
पलकन्हि हूँ परिहरी निमेषे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।।
लोचन मग रामहिं उर आनी।
दीन्हें पलक कपाट सयानी।।”

इस काव्य में सीता का  भगवान् राम के प्रति जो प्रेम भाव है वह रति स्थायी भाव है एवं सीता  लतादि उद्दीपन विभाव,  आलम्बन विभाव , देह , देखना , भारी होना आदि हर्ष , अनुभाव , उत्सुकता आदि संचारी भाव है अतः यह पूर्ण रूप से श्रृंगार रस है ।

  • > विप्रलम्भ श्रृंगार या वियोग

जहाँ वियोग के वजह से नायक और नायिका का प्रेम का वर्णन किया जाता है उसे ही वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार कहा जाता है उदाहरण के लिए –

कहेउ राम वियोग तब सीता।
मो कहँ सकल भए विपरीता।।
नूतन किसलय मनहुँ कृसानू।
काल-निसा-सम निसि ससि भानू।।
कुवलय विपिन कुंत बन सरिसा।
वारिद तपत तेल जनु बरिसा।।
कहेऊ ते कछु दुःख घटि होई।
काहि कहौं यह जान न कोई।।”

यहाँ राम का सीता के प्रति जो प्रेम भाव एक तरह से  रति स्थायी भाव है । वह , सीता आलम्बन ,राम आश्रय , प्राकृतिक चित्र उद्दीपन विभाव, पुलक,  कम्पऔर अश्रु अनुभाव तथा विषाद,चिन्ता , ग्लानि, दीनता आदि संचारी भाव हैं, अत: यह पूर्ण  वियोग शृंगार रस है।

2 ) हास्य रस (ras ke kitne ang hote hain-ras in hindi)

क्रियाकलाप, विकृत वेशभूषा, प्रयाश एवं  वाणी देख और सुनकर मन के भीतर जो उल्लास उत्पन्न होता है, उसे हास्य रस कहते हैं। हास्य रस का स्थायी भाव हास होता है उदाहरण के लिए –

“जेहि दिसि बैठे नारद फूली।
सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।।
पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।
देखि दसा हरिगन मुसकाहीं।।”

इस काव्य में स्थायी भाव हास, आश्रय दर्शक, आलम्बन वानर रूप में नारद, श्रोता उद्दीपन नारद की आंगिक चेष्टाएँ; जैसे-उकसना, अकुलाना बार-बार स्थान बदलकर बैठना अनुभाव हरिगण एवं अन्य दर्शकों  के द्वारा हँसी और संचारी भाव हर्ष, उत्सुकता,  चपलताआदि हैं, अत: यह हास्य रस है।

3 ) करुण रस 

शोक या दुःख का आभाष एवं  संवेदना बड़ी गहरी होती है अथार्त यह जीवन में सहानुभूति का भाव विस्तृत करती है जिससे मनुष्य को भोग भाव से धनाभाव की तरफ  प्रेरित करता है और साथ में करुणा से हमदर्दी, प्रेम उत्पन्न और आत्मीयता होता है जिससे व्यक्ति परोपकार की ओर अग्रसर होता है।

प्रिय का चिरवियोग , इष्ट वस्तु से हानि, अनिष्ट वस्तु से लाभ, अर्थ हानि, अतः जहाँ शोकभाव की परिपुष्टि होती है, वहाँ करुण रस होता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक है जैसे उदारहरण के लिए –

“सोक विकल एब रोवहिं रानी।
रूप सील बल तेज बखानी।।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा।
परहिं भूमितल बारहिं बारा।।”

जैसे की यहाँ स्थायी भाव शोक, रानियाँ आश्रय, दशरथ आलम्बन, राजा का रूप तेज बल आदि विलाप करना , अनुभाव उद्दीपन रोना और स्मृति, मोह, उद्वेग कम्प आदि संचारी भाव हैं।

4 ) वीर रस 

किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में उत्साह की मौजूदगी एवं स्थायी भाव के जागृत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे वीर रस कहा जाता है।अनुभाव, उत्साह स्थायी भाव जब विभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर सुस्वादु हो जाता है, तब वीर रस उत्पन्न होता है उदाहरण के लिए –

“मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।।
हे सारथे! हैं द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी।।”

यहाँ आलम्बन द्रोण स्थायी भाव उत्साह आश्रय अभिमन्युद्ध आदि अनुभाव अभिमन्यु के वचन, कौरव पक्ष और संचारी भाव गर्व,उत्सुकता ,हर्ष , आवेग, कम्प मद, उन्माद आदि हैं।

5 ) रौद्र रस

क्रोध ही मुख्या रूप से रौद्र रस का स्थायी भाव  है। विरोधी पक्ष द्वारा किसी व्यक्ति के समाज या धर्म , देश, का अपमान या अपकार करने पर उसके  प्रतिक्रिया में जो क्रोध उत्पन्न होता है, वह अनुभाव,विभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर सुस्वादु हो जाता है एवं तब रौद्र रस उत्पन्न होता है जिसके  उदाहरण के लिए –

“माखे लखन कुटिल भयीं भौंहें।
रद-पट फरकत नयन रिसौहैं।।
कहि न सकत रघुबीर डर, लगे वचन जनु बान।
नाइ राम-पद-कमल-जुग, बोले गिरा प्रमान।।”

यहाँ स्थायी भाव आश्रय लक्ष्मण, क्रोध, आलम्बन जनक के वचन उद्दीपन जनक के वचनों की कठोरता ,होंठ फड़कना,अनुभाव भौंहें तिरछी होना , आँखों का रिसौहैं होना संचारी भाव कम्प,अमर्ष-उग्रता आदि हैं ।

6 ) भयानक रस 

भयप्रद घटना या किसी वस्तु देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि करने से भय का संचार होता है और जब यही भय स्थायी भाव जब विभाव, संचारी भावों  और अनुभाव में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य होता है तो वहाँ भयानक रस उत्पन्न होता है जिसके उदाहरण-

“एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।”

ऊपर काव्य में  पथिक के एक ओर सिंह एवं  दूसरी ओर अजगर  की उपस्थिति से वह भय के वजह से मूर्छित हो गया है। यहाँ पर भय स्थायी भाव, यात्री , आश्रय,  सिंह और अजगरआलम्बन, अजगर और सिंह की भयावह आकृतियाँ एवं प्रयाश उद्दीपन, यात्री को मूर्छा होना आवेग और अनुभाव , निर्वेद, शंका, दैन्य, व्याधि, अपस्मार,  त्रासआदि संचारी भाव हैं ।

7 ) वीभत्स रस 

वीभत्स रस का स्थायी भाव  घृणा होता है। अनेक विद्वान् और जानकार इसे सहृदय के अनुकूल नहीं मानते हैं, फिर भी जीवन में घृणा उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ तथा वस्तुएँ कम नहीं हैं।घृणा का स्थायी भाव जब विभाव, संचारी एवं अनुभाव भावों से पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तब बीभत्स रस पैदा होता है । वीभत्स रस के उदाहरण

“सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
गीध जाँघ को खोदि खोदि के मांस उपारत।
स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।”

इस काव्य में राजा हरिश्चन्द्र श्मशान घाट के नजारा को देख रहे हैं इसलिए उनके मन में उत्पन्न  घृणा स्थायी भाव, दर्शक ( राजा हरिश्चन्द्रं) आश्रय, मुदें, मांस और श्मशान का दृश्य आलम्बन, स्यार, गीध, कुत्तों के द्वारा मांस नोचना और खाना उद्दीपन, राजा हरिश्चन्द्र का इनके बारे में सोचना अनुभाव और  व्याधि, ग्लानि आवेग, मोहआदि संचारी भाव हैं ।

8 ) अद्भुत रस 

आश्चर्यजनक दृश्य, अलौकिक या किसी वस्तु को देखकर तुरंत  विश्वास नहीं होता और मन में स्थायी भाव विस्मय पैदा होता है। यही विस्मय जब अनुभाव, विभाव और संचारी भावों में पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तो अद्भुत रस की उत्पत्ति होती है । अद्भुत रस के उदाहरण –

“अम्बर में कुन्तल जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख,
सब जन्म मझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।”

यहाँ ईश्वर का विराट् स्वरूप आलम्बन, स्थायी भाव विस्मय, विराट् के अद्भुत क्रियाकलाप उद्दीपन, आँखें फाड़कर देखते रहना , स्तब्ध, अवाक् रह जाना अनुभाव और भ्रम, चिन्ता, औत्सुक्य, त्रास आदि संचारी भाव हैं ।

9 ) शांत रस

शान्त रस कोअभिनवगुप्त ने सबसे सर्वश्रेष्ठ माना है। जीवन और संसार की नश्वरता का बोध होने के वजह मन में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है इसके फलस्वरूप मनुष्य  लौकिक एवं भौतिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है, इसी को निर्वेद कहा जाता हैं। जो संचारी, अनुभाव और  विभाव भावों से पुष्ट होकर शान्त रस में रूपांतरित हो जाता है। शान्त रस के उदाहरण-(example of shant ras in hindi)

“सुत वनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबही ते।
अन्तहिं तोहि तजेंगे पामर! तू न तजै अबही ते।
अब नाथहिं अनुराग जाग जड़, त्यागु दुरदसा जीते।
बुझै न काम अगिनि ‘तुलसी’ कहुँ विषय भोग बहु घी ते।।”

यहाँ स्थायी भाव, निर्वेद आश्रय, से सम्बोधित है तथा सांसारिक जन सुत वनिता,  आलम्बनआदि अनुभाव, सुत वनितादि को छोड़ने के लिए कहना संचारी भाव धृति, मति विमर्श आदि हैं ।

10 ) वात्सल्य रस 

वात्सल्य रस का सम्बन्ध मुख्य रूप से छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों का प्रेम और ममता के भाव से है। हिन्दी कवियों में सूरदास जी ने वात्सल्य रस को पूर्ण से प्रतिष्ठा दी है। तुलसीदास की बहुत तरह के कृतियों के बालकाण्ड में वात्सल्य रस का सुन्दर व्यंजना देखने को मिलते है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव स्नेह या वत्सलताहै। वातसल्य रस के उदाहरण-

“किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नन्द के आँगन बिम्ब पकरिबे धावत।
कबहुँ निरखि हरि आप छाँह को कर सो पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ पुनि पुनि तिहि अवगाहत।।”

इस काव्य में स्थायी भाव वत्सलता,  कृष्ण की बाल सुलभ चेष्टाएँ आलम्बन,किलकना उद्दीपन , रोमांचित होनाअनुभाव , मुख चूमना, संचारी भाव चपलता , गर्व,हर्ष , उत्सुकता आदि हैं ।

11 ) भक्ति रस 

भक्ति रस शान्त रस से अलग  है। शान्त रस जहाँ वैराग्य या निर्वेद  की तरफ ले जाता है वहीं भक्ति रस ईश्वरीय विषयक रति की ओर ले जाता हैं और  इसका स्थायी भाव भी यही  है। भक्ति रस के पाँच भेद हैं-वत्सल, प्रीति, प्रेम,  शान्तऔर मधुर। ईश्वर के प्रति भक्ति भावना स्थायी रूप में मानव संस्कार में प्रतिष्ठित है, इस दृष्टि से देखा जाए तो भक्ति रस मान्य है। उदाहरण-

“मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
साधुन संग बैठि बैठि लोक-लाज खोई।
अब तो बात फैल गई जाने सब कोई।।”

यहाँ स्थायी भाव ईश्वर विषयक रति, श्रीकृष्ण आलम्बन  कृष्ण लीलाएँ उद्दीपन , अश्रु, अनुभाव-रोमांच, सत्संग, संचारी भाव हर्ष,प्रलय , औत्सुक्य, निर्वेद,  गर्वआदि हैं।

FAQS-ras ke kitne bhed hote hain

Q- रस सिद्धान्त के प्रवर्तक कौन हैं?

A – भरतमुनि

Q – आचार्य भरत ने कितने रसों का उल्लेख किया है?

A – 8

Q – काव्यशास्त्र में हास्य के कितने भेद माने गए हैं?

A – 6

Q – काव्यशास्त्र के अनुसार रसों की सही संख्या है ।

A – 9

Q – संचारी भावों की संख्या है।

A – 33

Q – भक्ति रस की स्थापना किसने की ?

A – रूपगोस्वामी

Q – सात्विक अनुभाव कितने हैं?

A – 8

Q – निर्जन नटि-नटि पुनि लजियावै।
छिन रिसाई छिन सैन बुलावे।।
इस चौपाई में कौन-सा रस है?

A – सयोंग श्रृंगार रस

Q – आचार्य भरत ने सर्वाधिक सुखात्मक रस किसे माना है?

A – हास्य रस

Q – आलम्बन तथा उद्दीपन द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृत होने पर आश्रय में जो चेष्टाएँ होती हैं, उन्हें क्या कहते हैं

A – अनुभाव

निष्कर्ष(ras ke kitne ang hote hain-ras in hindi)

दोस्तों आपको मेरा  यह आर्टिकल ras ke udaharan कैसा लगा हमे कमेंट के द्वारा जोर बताये और साथ में कोई दूसरे सवाल भी हमसे पूछ सकते है जिसका उत्तर जल्द से जल्द देने कीकोशिश की जाएगी ।

Leave a comment