transistor in hindi full definition
transistor kya hota hai , kaise kaam karta hai , kahan lagaya jata hai
ट्रांजिस्टर कितने प्रकार के होते हैं – ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है
आज हम एक ऐसे इलेक्ट्रिक कॉम्पोनेन्ट के बारे में बात करेंगे जिसके अविष्कार के बाद ही पूरी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिये में एक नयी क्रांति आ गयी थी और सायद आपको पता भी जी हाँ हम आज transistor की बात कर रहे है और इसके बारे में पूरा जानने की कोशिस करेंगे
1925 में जर्मनी के भौतिक वैज्ञानिक Julius Edgar लिलेंफेल्ड ने field effect transistor पर कनाडा में एक प्राथना पात्र जमा कराया था लेकिन सबूतों के अभाव के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया था ।
लेकिन इसके बाद समय बिता और इसके ऊपर रिसर्च किये गए और आखिरी में John Bardeen, Walter Brattain और William Shockley की मदद से 1947 में ट्रांजिस्टर का अविष्कार किया गया ।
आज के समय में जितने भी अविष्कार हो रहे है या हो चुके है सबमे transistor का अहम् रोले होता है चाहे आप मोबाइल ले या सॅटॅलाइट ले या टीवी या कोई दूसरे उपकरण सबमे इसके प्रयोग के बिना अधूरा है । इस एक छोटे से अविष्कार ने पूरी दुनिया को बदल कर रखा दिया है ।
जब दुनिया को पहला कम्प्यूटर मिला तब भी ट्रांजिस्टर का उपयोग होता था लेकिन वो vaccum tube टाइप का ट्रांजिस्टर था । हम आज जिस ट्रांजिस्टर की बात करेंगे उसके मुख्यता तीन टर्मिनल होते है
जो collector , base , और emitter के नाम से जाना जाता है जिसमे प्राय emitter को नेगेटिव और कलेक्टर में पॉजिटिव कनेक्शन करवा कर हम सर्किट को कम्पलीट कराते हैं ।
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types of transistor
एनपीएन ट्रांजिस्टर इन हिंदी –transistor in hindi full definition
जैसा की इसके नाम से ही पता चलता है की इसके अक्षरों में हमे दो N और एक P का समावेश हैं यानि की इसके दो क्षेत्र नेगेटिव के होते हैं और एक क्षेत्र पॉजिटिव का होता हैं और इसके p सिरा को बिच में रखा जाता है एवं बचे दोनों छोरों पर नेगेटिव होता हैं ।
इसको यदि हम प्रैक्टिकल के द्वारा समझे तो थोड़ा आसान होगा अतः जब हम इसके बेस में किसी कमजोर सिग्नल को भेजते है या कोई करंट को सप्लाई देते है और इसके emitter को negative से कनेक्शन करते है
और कलेक्टर को किसी दूसरे कॉम्पोनेन्ट के साथ मिलकर पॉजिटिव के साथ जोड़ देने पर हमे collector-base से जो आउटपुट प्राप्त होता है वो बेस के सिग्नल से काफी मजबूत होता है ।
जैसा की आप निचे पिक्चर में देख सकते है की किस तरह से किसी सिग्ना को बेस में दिया गया और कलेक्टर और बेस के बिच से उसी सिग्नल को amplify के रूप में प्राप्त किया जाता हैं ।




पीएनपी ट्रांजिस्टर इन हिंदी
pnp transistor में npn के ठीक उल्टा होता है इसके दो सिरों पर positve और एक सिरे पर नेगेटिव की परते बिछाई जाती हैं और इसके बिच में पोस्ती को सप्लाई दिया जाता है और आउटपुट में नेगेटिव सिग्नल के द्वारा प्राप्त किया जाता है ।
इसके बेस से जो कमजोर करंट सिग्नल कलेक्टर की तरफ बहे वाले करंट को नियंत्रित करने का काम करता है ।उदारहण के तौर पर यदि हम इसको भी समझने की कोसिस करे तो आप निचे दिए हुए इमेज को देख सकते हैं इसमें एक स्विच की तरह कैसे काम करता है यह समझा गया है।


pnp transistor application
जैसा की आप ऊपर दिए इमेज में देखा सकते है की इस सर्किट में pnp transistor को एक स्विच सर्किट के रूप में दर्शाया गया है । जब हम इस ट्रांजिस्टर के बेस में किसी बैटरी की मदद से नेगेटिव वोल्टेज(- .7 voltage जो बेस के गेट को ओपन करने के लिए निर्धारित किया गया है )को सप्लाई देते हैं
तो collector से किसी लोड को जोड़ देते हैं तो ऐसी स्थिति में हमारा load on हो जाता हैं और इस प्रकार हमारा सर्किट कम्पलीट हो गया । pnp ट्रांजिस्टर को हम एक स्विच के रूप में आसानी से प्रयोग कर सकते हैं ।
transistor एक semiconductor मैटेरियल्स से मिलकर बना होता है जिसमे सिलिकॉन और जेर्मेनियम की मात्रा अधिक होती है । यह तीन टर्मिनल दो सर में voltage को input कर तीसरे सिरे से करंट को आउटपुट लिया जाता है
pnp और npn ट्रांजिस्टर के बीच का अंतर(transistor in hindi full definition)
अतः npn और pnp हमे ऊपर दिए उदहारण से पता चलता है की npn के बेस में हमे हमेशा पॉजिटिव कनक्शन देना है और वही दूसरी तरफ pnp में हमे नेगेटिव कनेक्शन देना है तभी हमारा सर्किट कम्पलीट होगा
npn के मुक़ाबले यदि हम amplyfy सर्किट के रूप में pnp transistor का प्रयोग करे तो output पर हमे amplify किया हुआ करंट npn transistor के तुलना में कमजोर सिग्नल प्राप्त होगा । इसलिए हम amplify में npn ट्रांजिस्टर को ज्यादा उपयोग में लाते हैं ।
field effect transistor
यह भी तीन टर्मिनल वाला एक सेमि कंडक्टर ट्रांजिस्टर हैं और जब से इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया में आया है तबसे इसमें बदलाव आते गए और आज की समय में यह Junction Field Effect transistors (JEFT) और MOSFET ट्रांजिस्टर आदि के रूप में भी सबसे ज्यादा प्रचलित है ।
field effect transistor application
इसके तीनो टर्मिनल के नाम ट्रांजिस्टर के नमो के तरह नहीं हैं अतः इसके एक पिन का नाम source , दूसरा drain , और तीसरा gate के नाम से जाना जाता है । यह एक reverse bias की तरह काम करता है field effect transistor बाइपोलर ट्रांजिस्टर के मुक़ाबले बहुत ही छोटे अकार में बनाया जाता है ताकि इसमें लगने वाले मटेरियल की मात्रा कम हो ।
1 ) field effect transistor का आउटपुट इम्पिडेन्स काम और इनपुट इम्पिडेन्स काफी हाई रहता है और इसीwajah से इसका उपयोग मापनेवाले वाले यंत्र, रइवर बफर में उपयोग किया जाता हैं ।
2 ) इसका उपयोग कास्केड एम्प्लिफिएर में किया जाता हैं क्योंकि इसमें इनपुट कपसिटेंसी काफी कम होती है
3 ) इसका उपयोग वोल्टेज वैरिएबल उपकरण में भी किया जाता है क्योंकि यह वोल्टेज को कंट्रोल कर सकता है ।
4 ) यह अकार में छोटा तथा औरो के मक़ाबले नॉइज़ काफी काम पैदा करता है इसलिए इसको रेप्लस आसानी से किया जाताहै
5 ) field effect transistor का उपयोग मल्टीप्लेक्सर और डिजिटल सर्किट में भी किया जाता हैं ।
यह दो प्रकार के होते हैं जैसा की ऊपर इमेज में दिया गया हैं आप देख सकते हैं । एक junction field effect दूसरा metal oxide field effect transistor.
junction field effect transistor :- इसके भी तीन टर्मिनल होते है और यह इलेक्ट्रिक स्विचिंग, वोल्टेज कंट्रोल रजिस्टर , एम्पलीफायर में ज्यादा इस्तेमाल होता है । इसके विसेसता यह है की यह high input empedence वाला होता है । यह अकार में छोटा और बिजली की कम खपत करता हैं ।
metal oxide field effect transistor(mosfet) :- इस ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल electric सिग्नल को एम्पलीफी करने के लिए किया जाता है और हाई फ्रीक्वेंसी एम्पलीफी में भी किया जाता हैं ।
NPN और PNP ट्रांजिस्टर में अंतर
1 ) pnp के तुलना npn के सिंबल की यदि बात करे तो इसके अंदर तीर का निसान अनदर को जाता है जबकि pnp में तीर का निसान बहार की तरफ निकलता है
2 ) npn transistor में electron की संख्या ज्यादा होती है जबकि pnp में holes की संख्या काफी ज्यादा होती है
3 ) pnp transistor में current emitter से collector की तरफ बहता है जबकि npn में करंट कलेक्टर से emitter की तरफ बहता है और इसे हम ट्रांजिस्टर बयाझिंग भी कहते है ।
4 ) npn में switching का समय काफी तेज़ गति से होता है क्योंकि इसमें इलेक्ट्रान की संख्या ज्यादा होती हैं और pnp में ऐसा नहीं होता है ।
5 ) दोनों ही ट्रांजिस्टर अपने अपने कार्यों के लिए जाने जाते हैं और npn और पंप में npn को ज्यादा अहमियत दिया जाता है ।
6 ) pnp और npn transistor दोनों ही bipolar transistor की श्रेणी में आते हैं अतः इन्हे bipolar ट्रांजिस्टर भी कहते हैं ।
7 ) हमे कभी भी उसके बेस में ज्यादा वोल्टेज या करंट को नहीं देना चाहिए नहीं ट्रांजिस्टर जल जाता है ।
FAQs
ट्रांजिस्टर कैसे बनाया जाता है?
ट्रांजिस्टर में सबसे अधिक सिलिकॉन और जर्मेनियम इस्तेमाल होता है जो जिनमे अर्धचालक के सबसे अच्छे गुण होते हैं .
ट्रांजिस्टर की पहचान कैसे करें?
ट्रांजिस्टर के बेस में पॉजिटिव और नेगेटिव के बहाव को जांच कर और उसके आउटपुट को पता कर ट्रांजिस्टर पहचान सकते हैं .
ट्रांजिस्टर में कितने टर्मिनल होते हैं?
इसके तिन टर्मिनल होते हैं जिसमे 1 – कलेक्टर २ – बेस एवं ३ – एमिटर
ट्रांजिस्टर नाम का क्या महत्व है?
यह इलेक्ट्रिक डिवाइस में सबसे अधिक संख्या में इस्तेमाल किया जानेवाला पुर्जा है जो एम्पलीफाई में सबसे अधिक उपयोग होता हैं .
पावर ट्रांजिस्टर(transistor in hindi full definition)
वो ट्रांजिस्टर जो हाई पावर को सप्लाई करने में सक्षम होते है उसे ही power transistor कहा जाता हैं । यह दोनों ही यानि pnp और npn में रूप में उपलब्ध होते है और इनके अंदर current स्वीकार करने की क्षमता 1 से 100 तक की होती हैं ।
यह दिलचस्प जानकारी दोस्तों आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बतायेगे और इलेक्ट्रॉनिक्स से जुडी किसी दूसरे जानकारी को प्राप्त करने के लिए भी आप हमसे सवाल कर सकते है जिसका जवाब देने में मै हमेसा तत्पर रहूँगा । धन्यवाद